सोचता हूं अपने हालात कि किस्से क्या शिकायत करूं, कोइ मिल जाय ऐैसा जिस्से जिंदगी कि वकालत करूँ।
अशकों मे बेहति जा रही है जिंदगी, अब इन अशकों से उनके बहने कि किस्से क्या शिकायत करूं।
वक्त के पहियों में सिमट गई हे जिंदगी, पता हि नहीं चला कि कब कुछ अपने पराये हो गये ओर कब पराये अपनों से भि ज्यादा प्यारे हो गये।
फुरसत के वो लम्हें पता नहिं क्यों जुदा हो गये, जिन लम्हों मे कभि तलाशी थी जिंदगी, अब वो लम्हे भि बेवफा हो गये।
युं तो वक्त मिलता नहिं जालिम, लेकिन जब भि मिलता हे तो निकल जाता हूं उन खुशी के लम्हों को धूंडने मे जो वक्त कि आपा-धापि मे कहिं खो गये।
अब इस बात कि किस्से क्या शिकायत करूं।
जि्ंदगी की कशमकश कुछ ऐसि हे जिस के लिये दिल में कोइ चाहत नहीं उसके साथ ता उम्र रहना मजबूरी हे ओर जिसके लिये दिल मे बे इम्तहा मोहाब्बत हे उसके साथ बनानी पड़ती दूरी हे।
अब इस बात कि किस्से क्या शिकायत करूं।
जब कभि फुरसत मिलती हे तो उन पूरानी तस्विरों को देख लेता हूं, ओर अपने पिता के साथ बिताए उन पलों को याद करता हूं, जब उन्होने चलना सिखाया था।
ओर अब जिंदगी कि रफ्तार मे इतना तेज चल पड़ा हूँ कि जब जब पैसों कि कमी होती हे तो उनको याद करता हूं ओर खुशी के पलों में उनके होने कि ना कभि फरियाद करता हूँ।
इस जिंदगी ने इतना मतलबि बना दिया अब इस बात कि कि किस्से क्या शिकायत करूं।
जो कभि ख्वाब देखे थे, अब वो ख्वाब टूट चुके हें, मंजिल पर पहुंचने कि जद्दो-जहद में कई अपने पीछे छुट चुके हें।
अब इस बात कि किस्से क्या शिकायत करूं।
धीरे-धीरे वक्त के साथ-साथ चलना अब सीख गया हूं दोस्तों, कुछ बातें हें जो दिल को बहुत दुखाती हें उनके साथ जीना सीख गया हूं। जिंदगी के इस मीठे जहर का धूंट पीना अब सीख गया हू़ं।
पहले जब उदास होता था तो मां कि गोद में सर होता था ओर हाथ मे मां का हाथ, अब उदास होता हू़ं तो मयखाने कि टेबल पर सर होता हे ओर हाथ में शराब का गिलास।
कितना बदल दिया हे जिंदगी ने, इस बात कि किस्से क्या शिकायत करूं।
अभि तो जिंदगी आधी गुजरि हे ओर आधी अभी बाकि हे, अकेला चल पड़ा हूं रास्तों पर, ना कोइ संगि हे ना कोइ साथी है।
जिनका मिला हे साथ, जिनके हाथों में हे हाथ, खुश हो जाता हूं जब हो जाति हे उनसे थोड़ि सि बात, पर डरता हूं कि जिंदगी कि आपा-धापि मे छूट ना जाये उनका साथ।
अब इस बात कि किस्से क्या शिकायत करूं।
Written & Scripted by: Rohit